अनगढ़ अनमने से अब तक,
कुछ स्वप्न बचपने से अब तक,
लगे कभी बचकने से ..
कई स्वप्न अनसुने से अब तक...
कुछ टूटे कुछ रूठे..
कुछ बदली में धुल के छूटे..
कुछ भूलभुलैया में उलझे ..
कई स्वप्न बेगाने से अब तक..
कुछ बुढ़ापे से रंगीन, कुछ हसीं जवानी से..
कुछ मील के पत्थर से लगते..
कई स्वप्न भटके पथिक से अब तक..
कुछ दुःख की नमकीन डली से..
कुछ कहकहों की कली से..
कुछ बुलबुलों से फटते..
कुछ गुमशुदा कही किसी..
सीप में मोती से अब तक...
सीधे .. कुछ जलेबी से ..
कुछ कडवी निम्बोली से..
लगे कुछ भेलपुरी से चटपटे..
कुछ स्वप्न रसीले से अब तक..
प्रयत्न करो, करो स्वप्न सार्थक..
नहीं खरीदने पड़ते स्वप्न किसी हाट से ..
ये मन के रहिवासी, पथिक गगन के ..
इनके संग चलो .. उड़ चलो ...
ओ बटुक मुसाफिर चले चलो ....
कुछ स्वप्न बचपने से अब तक,
लगे कभी बचकने से ..
कई स्वप्न अनसुने से अब तक...
कुछ टूटे कुछ रूठे..
कुछ बदली में धुल के छूटे..
कुछ भूलभुलैया में उलझे ..
कई स्वप्न बेगाने से अब तक..
कुछ बुढ़ापे से रंगीन, कुछ हसीं जवानी से..
कुछ मील के पत्थर से लगते..
कई स्वप्न भटके पथिक से अब तक..
कुछ दुःख की नमकीन डली से..
कुछ कहकहों की कली से..
कुछ बुलबुलों से फटते..
कुछ गुमशुदा कही किसी..
सीप में मोती से अब तक...
सीधे .. कुछ जलेबी से ..
कुछ कडवी निम्बोली से..
लगे कुछ भेलपुरी से चटपटे..
कुछ स्वप्न रसीले से अब तक..
प्रयत्न करो, करो स्वप्न सार्थक..
नहीं खरीदने पड़ते स्वप्न किसी हाट से ..
ये मन के रहिवासी, पथिक गगन के ..
इनके संग चलो .. उड़ चलो ...
ओ बटुक मुसाफिर चले चलो ....