Thursday, November 24, 2011

तर्क

शर्म अब बन गयी है नर्म ,
यहाँ -वहां जज़्बात बेचते लोग ;
हो गए खरीददारी के बाज़ार गर्म ,
भीतर के खुदा को शैतान बना के लोग ;
करते है भाई-भाई में फर्क ,
है सबके भीतर लहू एक सा ....
इंसानियत के "हे ठेकेदारों "!
मत दो ,मत दो 'अब मत दो ...
मंदिर ,मस्जिद ,को अलग करने वाले तर्क ,

No comments:

Post a Comment