Friday, March 23, 2012

तुम

मेरे जीवन के मुक्त छंद,
मनदर्पण के तुम विमल अंश ....
मकरंद, मधुप मनोभावों के,
संस्कृति के हो तुम परमहंस .....
तन प्राण श्वास के प्रवाहक ,
मम स्तुति के तुम प्रथम मंत्र ....
अज्ञेय परे मन चिंतन के ,
शबरी के जूठे चुने कंद...
अनुभूत सहज पूर्वगामी ,
मेरे प्रवास के प्रेम पंख ....




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