कल ही पेपर में पढ़ा था, ठण्ड है ज्यादा ....
जगह -जगह अलाव जल रहे है ,
किसी नेता ने कहा था ;हम ध्यान दे रहे है ,
फिर आज ये कैसी खबर ....
दस की हुई मौत सर्दी से ठिठुर ,
हुआ कष्ट बहुत ,पड़ी रो अंतरात्मा,
की रहते वातानुकूलित कमरों में हम,
दुबके रजाई में हम ,
कष्ट सहते खुले आसमान के नीचे रहते ,
ठण्ड से मरते ...
वो भी इंसान और हम भी ,
दायित्व क्या ये सिर्फ नेताओं का ,हमारा नहीं ...
इंसानियत हममे क्या शेष न रही ....
कर सकते नहीं हम महसूस क्यों पीड़ा ...
कुछ कर गुजरने का उठा लो तुम बीड़ा ,
भूख से ठण्ड से फिर मरे न कोई ,
तुम्हारे भीतर की मानवता ...
रहे न अब सोई .
har rachna bhaut jajjbati ahsaasoin se bhari hui...
ReplyDeleteaaj apne jaisa koi mila is blog ki dunia mein..jo samaaz ke dard se dukhi hota hai,...acha laga
Thanks Sakhi..
ReplyDeleteFor sharing your views on it :)