Thursday, January 7, 2010

खबर

कल ही पेपर में पढ़ा था, ठण्ड है ज्यादा ....
जगह -जगह अलाव जल रहे है ,
किसी नेता ने कहा था ;हम ध्यान दे रहे है ,
फिर आज ये कैसी खबर ....
दस की हुई मौत सर्दी से ठिठुर ,
हुआ कष्ट बहुत ,पड़ी रो अंतरात्मा,
की रहते वातानुकूलित कमरों में हम,
दुबके रजाई में हम ,
कष्ट सहते खुले आसमान के नीचे रहते ,
ठण्ड से मरते ...
वो भी इंसान और हम भी ,
दायित्व क्या ये सिर्फ नेताओं का ,हमारा नहीं ...
इंसानियत हममे क्या शेष न रही ....
कर सकते नहीं हम महसूस क्यों पीड़ा ...

कुछ कर गुजरने का उठा लो तुम बीड़ा ,
भूख से ठण्ड से फिर मरे न कोई ,
तुम्हारे भीतर की मानवता ...
रहे न अब सोई .

2 comments:

  1. har rachna bhaut jajjbati ahsaasoin se bhari hui...

    aaj apne jaisa koi mila is blog ki dunia mein..jo samaaz ke dard se dukhi hota hai,...acha laga

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  2. Thanks Sakhi..

    For sharing your views on it :)

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