Wednesday, January 6, 2010

विवशता

मेरे यहाँ काम करने आने वाली सावित्री बूढी हो गयी है ,
उससे बीस बरस बड़ा पति चार बच्चे देकर
जब वो तीस की थी गुजर गया ,
मजदूरी करके बच्चों की परवरिश
में सावित्री ने जवानी गला दी...
वह चरित्रहीन होती तो ज़िन्दगी "फिर भी" आसान हो जाती ,
पर खुद की नज़र में सावित्री कभी गिरी नहीं ,
अब बच्चे बड़े हो गए हैं ,
मारते हैं गालियाँ देते हैं ,
खाने को भी कुछ नहीं देते,
तब भी सावित्री कापते हाथों से काम करती है॥
जो उसे खाना मिलता है ,
खुद नहीं खाती पोतों को ले जाती है...

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