Sunday, February 14, 2010

अपनी बात

सोचा था कभी मैंने भी ...
पहचान अलग सी होगी ,
प्रतीस्पर्धा की होड़ है ,
दौड़ लगनी होगी ...
प्रयासरत थी तभी दिल की अँधेरी सी एक गली ,
अचानक रोशन हुई ...
अब तो बेटी की जूठन की इमरतीओ को ;
अपने मुह में लतपताना अच्छा लगता है ...
उसकी भोली बतिया छौक से निकली फुटकीया
कुछ हल्दी की चुटकिया रस भरी भोली बतिया ;
सुनना अच्छा लगता है...
समोसे की मिर्ची और हलवे की मिठास में ,
कभी -कभी गर्मी में ;खस -खस की प्यास में ,
गुजरते गज़र के घंटो में सजन को सजाना ,
अच्छा लगता है ...
अक्षरों को जगाकर ;मन में दिया जलाना,
मोती की , पूसी की ,धोबन की बेटी की ,
भूख में रोटी का टुकड़ा बन जाना,
अच्छा लगता है ...
प्रकृति को निहारना ,सखियों संग बाते करना ,
चुटकुलों की चौपड़ पे मुस्कानों के पुल बनाना ,
अच्छा लगता है ...
सभी बच्चो को अपनाना;
शब्दकोष से "अनाथ 'शब्द मिटाना ,
हर चेहरे पे मुस्कान खिलाना ,
अच्छा लगता है ...
जीवन की ऊचाइओ को छू लेने की दौड़ ,
अब भूल गयी हूँ ,अब जीवन के राग गुनगुनाना ,
अच्छा लगता है ....

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