Thursday, February 18, 2010

पिता

खड़ा "वह "अपनी चौखट पर ,
आस -पास बने ऊँचे मकानों को ;
तकता नज़र भर ,
फिर देखता मेहनत से बनाया ;
अपना छोटा सा घर ,
देता शिक्षा अपने बच्चो को ,
अच्छे पिता की तरह ;
घर के भीतर ,
ऊँची है भले ही उनके छत की प्राचीर ,
देखना पड़ता है हमें सर उठाकर ,
तुम ऊँचे बनना ;और बनना सच्चे ,
बड़े होकर ॥
तुम तक पहुचनें के लिए ;
सोचना पड़े उन्हें ;करनी पड़े बात तुमसे ,
गर्दन झुकाकर...
और तुम्हारी ऊंचाई से मिलने वाली प्रसन्नता ,
हो इतनी गहरी कि सारे झेले अवसाद ,
उड़ जाये पुष्प बनकर ....

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