Monday, August 15, 2011

jazbat

होते नहीं क्यों जज्बात पुराने ,
तासीर बन गयी नश्तर क्यों,
ताबीर गर खयालात की मुकम्मल नहीं,
थी तामील करी जो ...रह गयी थी उसमे कोई कमी ?

No comments:

Post a Comment