Wednesday, June 16, 2010

aurat

ढूढती है अपनी ज़मी,
सालती है सहयोग की कमी ,
पृथक-पृथक ज़िम्मेदारिया ;
औरत बटती जाती है ,
पति को घर में ;ऑफिस में बॉस को ,
'चलते पुर्जे ' की जरुरत होती है ,
बेहतर करने की कोशिश में ;
औरत पिसती जाती है ,
भविष्य बच्चों का सवारना;
ख्याल सबका रखना ,
अपनों को अपेक्षित मंजिल तक पहुचाने में ,
औरत घिसती जाती है ,
वरीयताओं को छोड़ अपनी ;
तलाशती पहचान अपनी ;
खुद को साबित करने में ,
औरत घटती जाती है ,
एक अच्छी माँ ,
एक अच्छी पत्नी ,
एक अच्छी एम्प्लोई ,
क्या है सिर्फ यही उसका मुकाम ?
समय से पहले ही ;
औरत बूढी होती जाती है .......

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